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*गीता अध्याय 2/13*@gitasatsang
डां.हरिवंश पाण्डेय
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*देहिनोऽस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ।।१३।।*
*देहिनः* (शरीरधारीका) *अस्मिन् देहे* (इस शरीरमें) *यथा* (जिस प्रकार) *कौमारम्* (कुमारावस्था) *यौवनम्* (युवावस्था) *जरा* (वृद्धावस्था) *तथा* (उसी प्रकार) *देहान्तर-प्राप्ति:* (अन्य शरीरकी प्राप्ति होती है) *धीरः* (बुद्धिमान् व्यक्ति) *तत्र* (उस विषयमें) *न मुह्यति* (मोहित नहीं होते हैं) ।
भाव है-जिस प्रकार शरीरधारी जीवात्मा इस स्थूल शरीरमें क्रमशः कुमारावस्था, यौवनावस्था तथा वृद्धावस्था प्राप्त करता है, उसी प्रकार मृत्योपरान्त जीवात्माको अन्य शरीर प्राप्त होता है। अतः धीर व्यक्ति इस विषयमें अर्थात् शरीरके नाश एवं उत्पत्तिके विषयमें मोहित नहीं होते हैं।
*मनन चिंतन*
क्या संसार मे बदलाव पर हम दुःखी होते है?जैसे घर पुराना हो गया तो उसे गिराकर नया बनाते है,पर दुःखी नही होते।ऐसे ही शरीर मे बालपन बीता युवावस्था आई तो दुःखी नही होते,बल्कि प्रसन्नता होती है।ऐसे ही युवाकाल से बुजुर्ग हो गये तो भी दुखी नही हुये।
जैसे शरीर की ये अवस्थायें बीतने से दुख-सुख नही हुआ ऐसे ही शरीर का छूटना दुखद क्यो? वह तो सुखद होना चाहिए, द्रोण-भीष्मपितामह की वृद्ध शरीर छूट कर नवीन मिले तो ये सुखद स्थिति है।
भगवान कहते है इन परिवर्तनों से धीर जन मोहित नहीं होते, यानी सम रहते हैं।
भाव है तुम्हे भी शरीर बदलने से दुखी नहीं होना चाहिए, क्योकि तुम एक धीर पुरुष हो।
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