यूरिक एसिड

Wed, 15 Oct, 2025 at 12:00 am UTC+05:30

Indira Nagar, Lucknow | Lucknow

Shri Shiv Shankar Ayurvedic Seva Charitable Trust
Publisher/HostShri Shiv Shankar Ayurvedic Seva Charitable Trust
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वर्तमान समय में यूरिक एसिड की समस्या बहुत आम होती जा रही है, विशेषकर शहरी जीवनशैली, अनुचित खानपान और तनावपूर्ण दिनचर्या के कारण। यह समस्या जोड़ों के दर्द, सूजन और गठिया (Gout) जैसी स्थितियों का कारण बनती है। आधुनिक चिकित्सा में इसके लिए दवाएं उपलब्ध हैं, किंतु आयुर्वेद इसका उपचार जड़ से करने की प्रणाली पर आधारित है। यह लेख यूरिक एसिड को आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से समझने और उसके समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास है।
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यूरिक एसिड क्या है?
यूरिक एसिड शरीर में प्यूरीन नामक तत्व के टूटने से बनता है। जब यह मात्रा में अधिक हो जाता है या किडनी इसे ठीक से बाहर नहीं निकाल पाती, तो यह रक्त में जमने लगता है और जोड़ों में क्रिस्टल के रूप में एकत्र हो जाता है। इससे असहनीय दर्द, सूजन और लालिमा होती है।
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आयुर्वेद में यूरिक एसिड की व्याख्या
आयुर्वेद में यूरिक एसिड को सीधे नाम से नहीं पहचाना गया है, लेकिन इसके लक्षणों और स्वरूप को वातरक्त रोग के अंतर्गत वर्णित किया गया है। वात और रक्त दो प्रमुख दोष जब दूषित होकर जोड़ों में अवरोध उत्पन्न करते हैं, तब वातरक्त उत्पन्न होता है। यह स्थिति आधुनिक चिकित्सा में "गाउट" (Gout) से मेल खाती है।
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यूरिक एसिड बढ़ने के कारण (आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से)
अत्यधिक मांस, शराब और अम्लीय भोजन का सेवन
अग्निमांद्य (कमजोर पाचन शक्ति)
अधिक निद्रा, निष्क्रिय जीवनशैली
मानसिक तनाव, क्रोध, और चिंता
अनुचित दिनचर्या, जैसे रात में देर तक जागना
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लक्षण
जोड़ों में तेज, चुभन जैसा दर्द
विशेषकर पैरों के अंगूठे के जोड़ में सूजन
चलने में कठिनाई
लालिमा और गर्माहट
कभी-कभी हल्का बुखार या थकावट
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आयुर्वेदिक उपचार विधियाँ
1. आहार और दिनचर्या में सुधार
अनुशंसित आहार:
हल्का सुपाच्य भोजन: लौकी, तोरी, परवल, मूंग दाल
जौ और पुराने चावल से बने भोजन
बेल, गिलोय, आंवला जैसे औषधीय रस
पानी अधिक मात्रा में पीना (गुनगुना जल उत्तम)
वर्जित आहार:
मांसाहार, मद्यपान
दही, टमाटर, पालक, मशरूम, राजमा
तीखा, तला हुआ और बासी भोजन
दिनचर्या संबंधी निर्देश:
नियमित व्यायाम करें
रात्रि में समय पर सोना
मानसिक शांति बनाए रखना
पाचन क्रिया को उत्तेजित करने वाले उपाय अपनाना (जैसे त्रिकटु, अजवाइन)
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2. प्रमुख आयुर्वेदिक औषधियाँ (विस्तृत विवरण)
1. गिलोय (Guduchi):
यह एक अत्यंत प्रभावशाली औषधि है जो शरीर में वात और पित्त को संतुलित करती है। गिलोय का रस या सत्व यूरिक एसिड कम करने में सहायक होता है। यह रक्त को शुद्ध करता है और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
2. त्रिफला:
हरड़, बहेड़ा और आंवला से बनी त्रिफला पाचन को सुधारती है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालती है। यह कब्ज मिटाकर अग्नि (पाचन शक्ति) को संतुलित करती है, जिससे यूरिक एसिड का स्तर संतुलित रहता है।
3. पुनर्नवा (Punarnava):
यह एक प्राकृतिक मूत्रवर्धक है, जो यूरिन के माध्यम से अतिरिक्त यूरिक एसिड को बाहर निकालने में मदद करता है। यह सूजन और जलन को भी कम करता है, और जोड़ों को हल्का बनाता है।
4. वारुण (Varuna):
यह एक रक्तशोधक औषधि है। यह शरीर में संचित पित्त और वात दोष को दूर करने में सहायक होती है, विशेषकर जोड़ों के रोगों में इसका विशेष महत्व है।
5. गोक्षुर (Gokshura):
गोक्षुर मूत्र प्रणाली को मजबूत करता है। यह किडनी की कार्यक्षमता को बढ़ाकर यूरिक एसिड को बाहर निकालने में मदद करता है। यह शारीरिक बल और जोड़ों की गति में भी सहायक होता है।
6. नीम और हरिद्रा (हल्दी):
दोनों ही औषधियाँ सूजन-रोधी और जीवाणु-नाशक होती हैं। जोड़ों की सूजन और दर्द में यह विशेष रूप से लाभकारी हैं। नीम रक्त शुद्ध करता है और हल्दी वात-पित्त संतुलन को बनाए रखती है।
7. कटीरा गोंद:
शीतल प्रकृति की यह औषधि वात दोष को शांत करती है और जोड़ों के दर्द में राहत देती है। इसे दूध या पानी में भिगोकर सेवन किया जा सकता है।
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3. पंचकर्म चिकित्सा
आयुर्वेद में शोधन क्रियाओं के माध्यम से रोग को मूल से निकालने की पद्धति अपनाई जाती है। यूरिक एसिड में निम्नलिखित पंचकर्म अत्यंत उपयोगी माने जाते हैं:
विरेचन (पित्त एवं रक्त दोषों का शोधन)
बस्ति (वात दोष शमन हेतु औषधि युक्त एनिमा)
लेपन (औषधीय पेस्ट से प्रभावित जोड़ों पर लेप)
स्वेदन (स्टीम थेरेपी, जिससे संचित दोष बाहर निकलें)
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घरेलू उपचार
गिलोय रस 10-15ml सुबह-शाम
त्रिफला चूर्ण 1 चम्मच रात को गर्म पानी से
मेथी दाना चूर्ण 1/2 चम्मच खाली पेट
सेब का सिरका 1 चम्मच गर्म पानी में
अदरक-हल्दी की चाय सुबह-शाम
आयुर्वेद के अनुसार, यूरिक एसिड की समस्या सिर्फ एक जैविक असंतुलन नहीं है, बल्कि यह दोषों (वात-पित्त) और धातुओं के विकृति का परिणाम है। आयुर्वेद इसका उपचार आहार, दिनचर्या, औषधियों और शुद्धि क्रियाओं के माध्यम से करता है, जिससे रोग की पुनरावृत्ति नहीं होती। सही मार्गदर्शन और संयम से इसे पूर्णतः नियंत्रित किया जा सकता है।
वैद्य विजय कुमार मिश्र
श्री शिव शक्ति आयुर्वेद हॉस्पिटल
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