आचार्य पं.सत्यप्रकाश रावत

Wed, 01 Jan, 2025 at 12:00 am UTC+05:30

Sushil Village Kehrai | Agra

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Publisher/Hostआचार्य पं.सत्यप्रकाश रावत
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!!श्री हरि: शरणम्!!
शौच (मल मूत्र त्याग आदि)के समय जनेऊ कान पर लपेटना जरूरी क्यों?
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आम बोलचाल में यज्ञोपवीत को ही जनेऊ कहते हैं। मल-मूत्र त्याग के समय जनेऊ को कान पर लपेट लिया जाता है। कारण यह है कि हमारे शास्त्रों में इस विषय में विस्तृत ब्यौरा मिलता है। शांख्यायन के मतानुसार ब्राह्मण के दाहिने कान में आदित्य, वसु, रुद्र, वायु और अग्नि देवता का निवास होता है। पाराशर ने भी गंगा आदि सरिताओं और तीर्थगणों का दाहिने कान में निवास करने का समर्थन किया है।
कूर्मपुराण के मतानुसार
निधाय दक्षिणे कर्णे ब्रह्मसूत्रमुदङ्मुखः।
अनि कुर्याच्छकृन्मूत्रं रात्रौ चेद् दक्षिणामुखः ॥
-कूर्मपुराण 13/
अर्थात् दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ाकर दिन में उत्तर की ओर मुख करके तथा रात्रि में दक्षिणाभिमुख होकर मल-मूत्र त्याग करना चाहिए। पहली बात तो यह है कि मल-मूत्र त्याग में अशुद्धता, अपवित्रता से बचाने के लिए जनेऊ को कानों
पर लपेटने की परंपरा बनाई गई है। इससे जनेऊ के कमर से ऊपर आ जाने के कारण अपवित्र होने की संभावना नहीं रहती। दूसरे, हाथ-पांव के अपवित्र होने का संकेत मिल जाता है, ताकि व्यक्ति उन्हें साफ कर ले।
अह्निककारिका में लिखा है
मूत्रे तु दक्षिणे कर्णे पुरीषे वामकर्णके।
उपवीतं सदाधार्य मैथुनेतूपवीतिवत् ॥
अर्थात् मूत्र त्यागने के समय दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ा लें और शौच के समय बाएं कान पर चढ़ाए तथा मैथुन के समय जैसा सदा पहनते हैं, वैसा ही पहनें ।
मनु महाराज ने शौच के लिए जाते समय जनेऊ को कान पर रखने के संबंध में कहा है-
ऊर्ध्व नाभेर्मेध्यतरः पुरुषः परिकीर्तितः ।
तस्मान्मेध्यतमं त्वस्य मुखमुक्तं स्वयम्भुवा ॥
-मनुस्मृति 1/92
अर्थात् पुरुष नाभि से ऊपर पवित्र है, नाभि के नीचे अपवित्र है। नाभि का निचला भाग मल-मूत्र धारक होने के कारण शौच के समय अपवित्र होता है। इसलिए उस समय पवित्र जनेऊ को सिर के भाग कान पर लपेटकर रखा जाता है।
दाहिने कान की पवित्रता के विषय में शास्त्र का कहना है
मरुतः सोम इन्द्राग्नी मित्रावरुणौ तथैव च।
एते सर्वे च विप्रस्य श्रोत्रे तिष्ठन्ति दक्षिणे ॥
-गोभिलगृहयसूत्र 2/90
अर्थात् वायु, चन्द्रमा, इन्द्र, अग्नि, मित्र तथा वरुण-ये सब देवता ब्राह्मण के कान में रहते हैं। दूसरी बात यह है कि इससे शरीर के विभिन्न अंगों पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है। लंदन के क्वीन एलिजाबेथ चिल्ड्रन हॉस्पिटल के भारतीय मूल के डॉ. एस. आर. सक्सेना के मतानुसार हिन्दुओं द्वारा मल-मूत्र
त्याग के समय कान पर जनेऊ लपेटने का वैज्ञानिक आधार है। जनेऊ कान पर चढ़ाने से आंतों की सिकुड़ने-फैलने की गति बढ़ती है, जिससे मलत्याग शीघ्र होकर कब्ज दूर होता है तथा मूत्राशय की मांसपेशियों का संकोच वेग के साथ होता है, जिससे मूत्र त्याग ठीक प्रकार होता है।
कान के पास की नसें दबाने से बढ़े हुए रक्तचाप को नियंत्रित भी किया जा सकता है। इटली के बाटी विश्वविद्यालय के न्यूरो सर्जन प्रो. एनारीब पिटाजेली ने यह पाया है कि कान के मूल के चारों तरफ दबाव डालने से हृदय मजबूत होता है। इस प्रकार हृदय रोगों से बचाने में भी जनेऊ लाभ पहुंचाता है।
आयुर्वेद में ऐसा उल्लेख मिलता है कि दाहिने कान के पास से होकर गुजरने वाली विशेष नाड़ी लोहितिका मल-मूत्र के द्वार तक पहुंचती है, जिस पर दबाव पड़ने से इनका कार्य आसान हो जाता है। मूत्र सरलता से उतरता है और शौच खुलकर होती है। उल्लेखनीय है कि दाहिने कान की नाड़ी से मूत्राशय का और बाएं कान की नाड़ी से गुदा का संबंध होता है। हर बार मूत्र त्याग करते समय दाहिने कान को जनेऊ से लपेटने से बहुमूत्र, मधुमेह और प्रमेह आदि रोगों में भी लाभ होता है। ठीक इसी तरह बाएं कान को जनेऊ से लपेट कर शौच जाते रहने से भगंदर, कांच, बवासीर आदि गुदा के रोग होने की संभावना कम होती है। चूंकि मल त्याग के समय मूत्र विसर्जन भी होता है, इसलिए शौच के लिए जाने से पूर्व नियमानुसार दाएं और बाएं दोनों कानों पर जनेऊ चढ़ाना चाहिए।
जनेऊ की 96 अंगुल लम्बाई 15 तिथि, 7 वार, 28 नक्षत्र, 24 तत्त्व, 4 वेद, 3 गुण, 3 का और 12 मास दिक्काल और ब्रह्मांड में अहर्निश व्रत पालन के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होने के लिए प्रमाण स्वरूप है ।
तिथिवारश्च नक्षत्रं तत्वं वेदा गुणत्रयम् ।
कालत्रयश्च मासाश्च ब्रह्मसूत्रपश्च षण्मव ।।
ज्योतिषीय महत्व : ~
विवाहितव्यक्ति को दो जनेऊ धारण कराया जाता है। धारण करने के बाद उसे बताया जाता है कि उसे दो लोगों का भार या जिम्मेदारी वहन करना है, एक पत्नी पक्ष का और दूसरा अपने पक्ष का अर्थात् पति पक्ष का। अब एक-एक जनेऊ में 9-9 धागे होते हैं जो हमें बताते हैं कि हम पर पत्नी और पत्नी पक्ष के 9-9 ग्रहों का भार ये ऋण है उसे वहन करना है। अब इन 9-9 धागों के अंदर से 1-1 धागे निकालकर देखें तो इसमें 27-27 धागे होते हैं। अर्थात् हमें पत्नी और पति पक्ष के 27-27 नक्षत्रों का भी भार या ऋण वहन करना है। अब अगर अंक विद्या के आधार पर देंखे तो 27+9 = 36 होता है, जिसको एकल अंक बनाने पर 36= 3+6 = 9 आता है, जो एक पूर्ण अंक है। अब अगर इस 9 में दो जनेऊ की संख्या अर्थात 2 और जोड़ दें तो 9+2= 11 होगा जो हमें बताता है की हमारा जीवन अकेले अकेले दो लोगों अर्थात् पति और पत्नी (1 और 1) के मिलने से बना है। 1+1 = 2 होता है जो अंक विद्या के अनुसार चंद्रमा का अंक है। जब हम अपने दोनों पक्षों का ऋण वहन कर लेते हैं तो हमें अशीम शांति की प्राप्ति हो जाती है।
आचार्य सत्यप्रकाश रावत
रावत नक्षत्र पॉइंट एंड वैदिक ज्योतिष अनुसन्धान केंद्र
9756758701
❗जय महादेव❗
⭕प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें‼️
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