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विनोद हाईवे पर गाड़ी चला रहा था...सड़क के किनारे उसे एक 12-13 साल की लड़की तरबूज बेचती दिखाई दी...
विनोद ने गाड़ी रोक कर पूछा "तरबूज की क्या रेट है बेटा? "
लड़की बोली
"50 रुपये का एक तरबूज है साहब..."
पीछे की सीट पर बैठी विनोद की पत्नी बोली
"इतना महंगा तरबूज नही लेना जी...चलो यहाँ से..."
विनोद बोला "महंगा कहाँ है... इसके पास जितने तरबूज है कोई भी पांच किलो के कम का नही होगा...
50 रुपये का एक दे रही है तो 10 रुपये किलो पड़ेगा हमें... बाजार से तो तू बीस रुपये किलो भी ले आती है... "
विनोद की पत्नी ने कहा ''तुम रुको मुझे मोल भाव करने दो...”
फिर वह लड़की से बोली
"30 रुपये का एक देना है तो दो वरना रहने दो..."
लड़की बोली "40 रुपये का एक तरबूज तो मै खरीद कर लाती हूँ आंटी...आप 45 रुपये का एक ले लो...इससे सस्ता मै नही दे पाऊँगी..."
विनोद की पत्नी बोली
"झूठ मत बोलो बेटा...सही रेट लगाओ...
देखो ये तुम्हारा छोटा भाई है न? इसी के लिए थोड़ा सस्ता कर दो..."
उसने खिड़की से झाँक रहे अपने चार वर्षीय बेटे की तरफ इशारा करते हुए कहा...
सुंदर से बच्चे को देख कर लड़की एक तरबूज हाथों मे उठाते हुए गाड़ी के करीब आ गई..फिर लड़के के गालों पर हाथ फेर कर बोली
"सचमुच मेरा भाई तो बहुत सुंदर है आँटी..."
विनोद की पत्नी बच्चे से बोली "दीदी को नमस्ते बोलो बेटा..."
बच्चा प्यार से बोला "नमस्ते दीदी...''
लड़की ने गाड़ी की खिड़की खोल कर बच्चे को बाहर निकाल लिया फिर बोली
"तुम्हारा नाम क्या भैया? "
लड़का बोला "मेरा नाम गोलू है दीदी..."
बेटे को बाहर निकालने के कारण विनोद की पत्नी कुछ असहज हो गई..तुरंत बोली "अरे बेटा इसे वापस अंदर भेजो... इसे डस्ट से एलर्जी है..."
लड़की उसकी आवाज पर ध्यान न देते हुए लड़के से बोली
"तु तो सचमुच गोल मटोल है रे भाई...तरबूज खाएगा?"
लड़के ने हाँ मे गर्दन हिलाई तो लड़की ने तरबूज उसके हाथों मे थमा दिया...
पाँच किलो का तरबूज गोलू नही संभाल पाया...तरबूज फिसल कर उसके हाथ से नीचे गिर गया और फूट कर तीन चार टुकड़ों मे बंट गया...तरबूज के गिर कर फुट जाने से लड़का रोने लगा...
लड़की उसे पुचकारते हुए बोली...
''अरे भाई रो मत...मै दूसरा लाती हूँ...''
फिर वह दौड़कर गई और एक और बड़ा सा तरबूज उठा लाई...
जब तक वह तरबूज उठा कर लाई इतनी देर मे विनोद की पत्नी ने बच्चे को अंदर गाड़ी मे खींच कर खिड़की बन्द कर ली...
लड़की खुले हुए शीशे से तरबूज अंदर देते हुए बोली "ले भाई ये बहुत मिठा निकलेगा।”
विनोद चुपचाप बैठा लड़की की हरकतें देख रहा था...
विनोद की पत्नी बोली
"जो तरबूज फूटा है मै उसके पैसे नही दूँगी...वह तुम्हारी गलती से फूटा है..."
लड़की मुस्कराते हुए बोली "उसको छोड़ो आंटी...आप इस तरबूज के पैसे भी मत देना... ये मैने अपने भाई के लिए दिया है..."
इतना सुनते ही विनोद और उसकी पत्नी दोनों एक साथ चौंक पड़े...
विनोद बोला "नही बिटिया तुम अपने दोनों तरबूज के पैसे लो..."
फिर सौ का नोट उस लड़की की तरफ बढ़ा दिया...लड़की हाथ के इशारे से मना करते हुए वहाँ से हट गई...और अपने बाकी बचे तरबुजों के पास जाकर खड़ी हो गई...
विनोद भी गाड़ी से निकल कर वहाँ आ गया था...आते ही बोला...
"पैसे ले लो बेटा वरना तुम्हारा बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा..."
लड़की बोली
"माँ कहती है जब बात रिश्तों की हो तो नफा नुकसान नही देखा जाता...आपने गोलू को मेरा भाई बताया मुझे बहुत अच्छा लगा... मेरा भी एक छोटा सा भाई था मगर.."
विनोद बोला "क्या हुआ तुम्हारे भाई को? "
वह बोली...'
"जब वह दो साल का था तब उसे रात में बुखार हुआ था...सुबह माँ हॉस्पिटल मे ले जा पाती उससे पहले ही उसने दम तौड़ दिया था...मुझे मेरे भाई की बहुत याद आती है...
उससे एक साल पहले पापा भी ऐसे ही हमे छोड़ कर गुजर गए थे...''
विनोद की पत्नी बोली...
"ले बिटिया अपने पैसे ले ले..."
लड़की बोली "पैसे नही लुंगी आंटी..."
विनोद की पत्नी गाड़ी मे गई फिर अपने बैग से एक पाजेब की जोड़ी निकाली...जो उसने अपनी आठ वर्षीय बेटी के लिए आज ही तीन हजार मे खरीदी थी... लड़की को देते हुए बोली...
''तुमने गोलू को भाई माना तो मै तुम्हारी माँ जैसी हुई ना...अब तू ये लेने से मना नही कर सकती...''
लड़की ने हाथ नही बढ़ाया तो उसने जबरदस्ती लड़की की गोद मे पाजेब रखते हुए कहा
"रख ले...जब भी पहनेगी तुझे हम सब की याद आयेगी..."
इतना कहकर वह वापस गाड़ी मे जाकर बैठ गई...
फिर विनोद ने गाड़ी स्टार्ट की और लड़की को बाय बोलते हुए वे चले पड़े...
विनोद गाड़ी चलाते हुए सोच रहा था कि भावुकता भी क्या चीज है...कुछ देर पहले उसकी पत्नी दस बीस रुपये बचाने के लिए हथकण्डे अपना रही थी...कुछ देर मे ही इतनी बदल गई जो तीन हजार की पाजेब दे आई...
फिर अचानक विनोद को लड़की की एक बात याद आई
"रिश्तों मे नफा नुकसान नहीं देखा जाता"
विनोद का प्रॉपर्टी के विवाद को लेकर अपने ही बड़े भाई से कोर्ट मे मुकदमा चल रहा था...
उसने तुरंत अपने बड़े भाई को फोन मिलाया...फोन उठाते ही बोला "भैया मै विनोद बोल रहा हूँ..."
भाई बोला "फोन क्यों किया? "
विनोद बोला
"भैया आप वो मैन मार्केट वाली दुकान ले लो...मेरे लिए मंडी वाली छोड़ दो...
और वो बड़े वाला प्लॉट भी आप ले लो...मैं छोटे वाला ले लूंगा...
मैं कल ही मुकदमा वापस ले रहा हूँ..."
सामने से काफी देर तक आवाज नही आई...
फिर उसके बड़े भाई ने कहा "इससे तो तुम्हे बहुत नुकसान हो जाएगा छोटे..."
विनोद बोला...
"भैया आज मुझे समझ मे आ गया है रिश्तों मे नफ़ा-नुकसान नही देखा जाता...एक दूसरे की खुशी देखी जाती है...उधर से फिर खानोशी छा गई...
फिर विनोद को बड़े भाई की रोने की आवाज सुनाई दी...
विनोद बोला
"रो रहे हो क्या भैया?"
बड़ा भाई बोला "इतने प्यार से पहले बात करता तो सब कुछ मै तुझे दे देता रे...अब घर आ जा... दोनों प्रेम से बैठ कर बंटवारा करेंगे...''
इतनी बड़ी कड़वाहट कुछ मीठे बोल बोलते ही न जाने कहाँ चली गई थी...कल जो एक एक इंच जमीन के लिए लड़ रहे थे वे आज भाई को सब कुछ देने के लिए तैयार हो गए थे...
कहानी का मोरल:-
त्याग की भावना रखिये...अगर हमेशा देने को तत्पर रहोगे तो लेने वाले का भी हृदय परिवर्तन हो जाएगा...
याद रखे रिश्तों मे नफा-नुकसान नही देखा जाता...
अपनो को करीब रखने के लिए कभी कभी अपना हक भी छोड़ना पड़ता है...
🚩🚩🙏🙏
#साभार
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Buddha Nagar, 30, Budhha Nagar,Bhubaneswar, India